CrPC 156(3) FIR दर्ज कैसे कराएं:
“थाने गया था इंसाफ लेने, पुलिस वाले बोले – मामला गंभीर नहीं है।
क्या जब कोई हमें थप्पड़ मारे, तब भी सोचना पड़े कि ‘सीरियस’ है या नहीं?”
ये जो FIR की राजनीति है न – ‘लिखेंगे नहीं’, ‘देखते हैं’, ‘अंदर से बात कर लो’, ये बहुत लोगों ने झेली है।
लेकिन आज मैं आपको एक ऐसा तरीका बताता हूं जो हर आम आदमी के पास होता है, पर 90% लोगों को पता नहीं। आपको पता होना चाइए क्युकी आने वाले समय में आपको भी जरूरत पड़ सकती हैं चलिए समझते हैं हमे ऐसे समय में क्या करना चाइए
CrPC 156(3) – सीधा मतलब👇
अगर पुलिस FIR दर्ज नहीं कर रही –
तो आप सीधे मजिस्ट्रेट कोर्ट जा सकते हो।
वहां आप बोल सकते हो:
“हुज़ूर, पुलिस मेरी शिकायत को दबा रही है, कृपया आदेश दें कि FIR दर्ज की जाए।”
मजिस्ट्रेट अगर संतुष्ट हुआ, तो पुलिस को मजबूरी में FIR दर्ज करनी ही पड़ेगी।
चलो समझते हैं की स्टेप-बाय-स्टेप क्या करें?
- एक शिकायती लेटर तैयार करो – क्या हुआ, कब हुआ, कैसे हुआ सब लिखो
- सबूत जोड़ो – जैसे फोटो, कॉल रिकॉर्ड, मेडिकल रिपोर्ट
- पहले SP या SHO को भेजो – अगर वहां भी अनदेखी हो
- फिर CrPC 156(3) के तहत कोर्ट में याचिका लगाओ
- वकील की मदद लो (जरूरी नहीं, पर आसान हो जाएगा)
ध्यान में रखने वाली बातें:
- FIR दर्ज करवाना आपका हक़ है, कोई एहसान नहीं
- कोई पुलिसवाला अगर FIR दर्ज नहीं करता, तो वो कानून तोड़ रहा है
- CrPC 156(3) का इस्तेमाल गलत केस में मत करो, वरना खुद फंस सकते हो
निष्कर्ष:CrPC 156(3) FIR दर्ज कैसे कराएं
अगली बार जब कोई बोले – “FIR नहीं लिखेंगे”
तो उसे बस इतना कहना:
“ठीक है साहब, अब कोर्ट से कहलवाऊंगा – फिर देखता हूं कौन नहीं लिखता।”
CrPC 156(3) एक ऐसा हथियार है – जो साइलेंट है, मगर बहुत स्ट्रॉन्ग है।
अगर ये जानकारी आपके काम आई, तो यकीन मानिए – किसी और के भी बहुत काम आ सकती है।
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क्योंकि कानून की जानकारी वही असली ताकत है जो कभी लाठी-डंडे नहीं मांगती, सिर्फ जागरूकता मांगती है।
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